जब उम्मीद जिम्मेदारियों के बोझ से टूट गयी
रिश्ते वक्त के खिंचाव को बर्दाश्त न कर सके
और प्यार, बीते हुए कल के
किसी बदनसीब पल में ज़ख्मी पड़ा है
इस सबके बाद जो जुस्तजू बची थी
उसे समाज की रस्में निगल गयी
और अब बचे हैं मैं और मेरी आवारगी
हर लम्हे ही जद्दोजहद में अपने
वुजूद की तलाश करते
रिश्ते वक्त के खिंचाव को बर्दाश्त न कर सके
और प्यार, बीते हुए कल के
किसी बदनसीब पल में ज़ख्मी पड़ा है
इस सबके बाद जो जुस्तजू बची थी
उसे समाज की रस्में निगल गयी
और अब बचे हैं मैं और मेरी आवारगी
हर लम्हे ही जद्दोजहद में अपने
वुजूद की तलाश करते
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