Sunday, August 17, 2008

वो चेहरा...

दिल इतना भर चुका था के
किसी भी पल छलकने को
तैयार थी उसकी आँखें

कब से उसने ख़ुद के किनारे

कुरेद कुरेद कर

समंदर को अन्दर बांधे रखा था
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कब तक संभालती वो

आख़िर दिल टूटा उसका और
वो आँखें बरस पड़ीं

बहुत लम्बी थी वो बरसात

बूँद बूँद करके

उसका समंदर सूख गया

उसके चेहरे पर बची सिर्फ़

नमक की कुछ खुश्क लकीरें

जिनको छुपाने के लिए उसने

एक नया चेहरा पहन लिया
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