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कुछ डर, कुछ ख्वाहिशें
थोड़ा दर्द, थोड़ी खुशी
कभी रास्ते तो कभी मंजिलें
सीने में दबी सिसकियाँ
होठों पर थकी हुई मुस्कराहट
कुछ ढूँढती हुई सी आँखें
साँसों से लटकी हुई घबराहट
चेहरे में दफन एक तलाश
लिखावट के ऊपर लिखावट
जिंदगी की भारी किताब के इस
मामूली से पन्ने को
न जाने किस बात का गुरूर था
जिंदगी ने तो इसे कभी पलट कर देखा भी नहीं
कभी कुछ लिखा तो कभी कुछ मिटा दिया
कुछ बातें याद रहीं और बाकी को यूं ही भुला दिया
फ़िर एक दिन ऐसे फाड़ कर फ़ेंक दिया
जैसे ये कभी ज़िन्दगी का हिस्सा भी ना रहा हो |
2 comments:
Wah Wah...Wah Wah... mia...Mukarrar Irshad.
Gud hai sirji.
shukriya sirji..
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