Monday, December 1, 2008

आम आदमी...


बेमकसद हौसले, लापरवाह कदम
बेवजह शिकवे, बेपनाह बेकार ग़म |

अधपके कुछ ख्याल, आधे अधूरे कुछ ख्वाब

कुछ कर गुज़रने की तलब, मगर वहम बेहिसाब |

भीड़ में खोया हुआ चेहरा, वही जाने पहचाने कुछ राज़
फ़िजूल सोच, सस्ती जिंदगी, ख़ुद ही से नज़रंदाज़ आवाज़ |

मैं - एक आम आदमी
मेरी आखें कभी देखना बंद नहीं करतीं
अंधेरे में भी मुझे मेरा अक्स दिखता है
रौशनी कभी मेरी रूह को छू भी नहीं पाती
और मैं ख़ुद की परछाइयों से डरता हूँ |

No comments: